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पुराने ज़ख्म

फिर कोई हमारे दिल के तारों को इस कदर हिला गया कि हमारा हर पुराना ज़खम आज फिर हरा हो गया। जो भुला दी थी बाते हमने मान कर काली रात आज फिर याद दिला दी उसने हर वो बीती बात। भुला दी थी अपने दिल की हर एक तकलीफ हमने मना लिया था मन को कि वक़्त अपना ही था खराब। ज़ुल्म जो भी किए ज़माने ने सब हमने दिए थे भुला पर आज फिर कोई अनजाना अपनो से कर गया जुदा। बड़ी मुश्किल से ज़िन्दगी को पटरी पर लाए थे हम फिर उसने हमारे जीवन के डिब्बे हिला दिए सब। ना जाने बदनामी का ये सिलसिला कब थमेगा क्या किसी दिन नाम मेरा भी इस दुनिया में बनेगा। ये बेइज्जती सहते सहते ही ना ये उम्र निकाल जाए सुनने को प्यार के दो शब्द मेरे कान ही तरस जाए। इसी इंतजार में ना आखरी शाम भी ढल जाए और इंतजार में मेरी ये सांसे भी यू ही कभी थम जाए...... रिंकी जुलाई २१, २०१८ ००:३९